डॉक्टर जी ने जब संघ शुरू किया, तब साधन नहीं थे, साधन रत हृदय था : मिथिलेश नारायण

डॉक्टर जी ने जब संघ शुरू किया, तब साधन नहीं थे, साधन रत हृदय था : मिथिलेश नारायण

Written by Prem Prakash Agarwal 2025-06-10 News
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, कानपुर प्रांत का संघ शिक्षा वर्ग (सामान्य) का समापन कार्यक्रम आज सीएचएस गुरुकुलम, मेहरबान सिंह का पुरवा में आयोजित हुआ। इस अवसर पर मंच पर मुख्य अतिथि बाबा नामदेव जी गुरूद्वारा, किदवई नगर, कानपुर के प्रधान सेवक सरदार नीतू सिंह जी, मुख्य वक्ता आरएसएस के क्षेत्र बौद्धिक शिक्षण प्रमुख, पूर्वी उत्तर प्रदेश मिथिलेश नारायण , कानपुर दक्षिण के भाग संघचालक राधेश्याम जी व संघ शिक्षा वर्ग (सामान्य) के सर्वाधिकारी रामलखन उपस्थित रहे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र बौद्धिक शिक्षण प्रमुख, पूर्वी उत्तर प्रदेश मिथिलेश नारायण ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने निर्माण के 100वें वर्ष में चल रहा है। अगामी विजयादशमी से हम शताब्दी वर्ष मनाएगें। भारत को विश्व गुरु दुनिया ने कहा था। स्वयं हमने नहीं कहा था। सावरकर ने कहा था कि टिड्डी दल की तरह भारत में लुटेरे आते रहे। कभी शक बनकर, कभी हूड़ बनकर, कभी मुगलों के रूप में आदि। उनका संकल्प था कि हम हिन्दू समाज को मिटाएंगे, पर हिंदू समाज की सजगता व स्वाभिमान के कारण हिन्दू आज नष्ट नहीं हुआ, अपितु आज भी हिन्दू आज बहुसंख्यक है। डा0 साहब ने 1925 में संघ का एक दीप जलाया, जिसमें संकल्प था कि व्यक्ति-व्यक्ति में जगाए राष्ट्र चेतना। उस समय डॉ. साहब को एवं संघ को कोई नहीं जानता था। लोग व्यंग करते थे कि हिन्दू कभी एक नहीं हो सकता है। वह कहते थे कि चार हिन्दू एक साथ तभी चलते थे, जब वह एक मुर्दे को कंधा पर रखते थे। लेकिन डॉक्टर साहब ने उद्देश्य बनाया कि ‘‘न हो साथ कोई अकेले चले हम’’ तथा ‘‘एक दीप से जलते दीप अनेक’’। और यह विशाल संगठन खड़ा किया। डॉक्टर जी ने जब संघ शुरू किया तब दो-चार साथी ही थे। पहले साधन नहीं थे, साधन रत हृदय था। विभाजन के समय गुरुजी ने कहा था कि भारत माता तो अब खंडित हो जाएगी, किंतु हिन्दुओं को सुरक्षित वापस लाने के लिए पूरा प्रयास किया जाना चाहिए। संघ के लोग पाकिस्तान से वापस आये। संघ पर पहला प्रतिबंध 1948 में लगा तथा दूसरा प्रतिबंध 1975 में लगा। गुरुजी प्रथम प्रतिबंध के समय जेल जाने लगे, तो उन्होंने स्वयंसेवकों को संदेश दिया कि सत्य कभी पराजित नहीं हो सकता। प्रतिक्रिया न दें। 1962 के युद्ध के समय स्वयंसेवकों ने तत्कालीन भारत सरकार का पूरा सहयोग किया। संगठित हिन्दू, समर्थ भारत। संघ के स्वयंसेवक भारत माता तेरी जय हो, यही संकल्प ले चलते रहे और आज जिधर देखो, उधर ही संघ का कार्य क्षेत्र दिखता है। विरोधी भी हमारी जय जय कर करते हैं। मन के सुख से ही शरीर का सुख होता है, यही एकात्म मानववाद है। वेदों में कहा गया है कि मेरे जीवन की पहली गुरु माता तथा पहली पाठशाला मेरा परिवार है। यह गुरुनानक, गुरु तेगबहादुर, बाबा साहब अम्बेडकर, सावरकर, भगत सिंह तथा आजाद का देश है। मुख्य अतिथि बाबा नामदेव गुरूद्वारा, किदवई नगर, कानपुर के प्रधान सेवक सरदार नीतू सिंह जी ने कहा कि धर्म हमको जोड़ता है। देश की मिट्टी से भी जोड़ता है। 1925 में बोया गया बीज आज 100 वर्ष बाद एक वृक्ष बन गया है, जो फल दे रहा है और उसकी लकड़ी भी काम आ रही है। खेल तथा बौद्धिक के माध्यम से बहुमुखी विकास हो रहा है। सिख का अर्थ है सीख अर्थात् सीखना होता है। यह वर्ग का समापन नहीं प्रारम्भ है। भारत विश्वगुरु है और रहेगा। सम्बोधन से पूर्व शिक्षार्थियों ने 15 दिन वर्ग में रहकर जो शारीरिक अभ्यास किया, उसका सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रांत संघचालक भवानी भीख जी, प्रान्त प्रचारक श्रीराम , सह प्रान्त प्रचारक मुनीश , प्रान्त प्रचार प्रमुख डॉक्टर अनुपम , प्रान्त कार्यवाह रामकेश , सह प्रान्त कार्यवाह प्रदीप भदौरिया , सह प्रान्त व्यवस्था प्रमुख विकास , विभाग प्रचारक बैरिस्टर , वर्ग मुख्य शिक्षक यशवीर , वर्ग शारीरिक प्रमुख मनीष यादव , वर्ग कार्यवाह शशिकांत , सह वर्ग कार्यवाह अरविन्द , वर्ग बौद्धिक प्रमुख अनिल , साहब लाल , अंकुर , आशीष , प्रशांत आदि प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित रहे।